अध्याय:14 विभाजन को समझाना

NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:14 विभाजन को समझाना

1.1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की ?
उत्तर : 1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने माँग कि की उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुत इलाकों के लिए सिमित स्वायत्ता की माँग करते हुए प्रस्ताव पेश किया l इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था l बल्कि, इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और युनियनिष्ट पार्टी के नेता सिकंदर हयात खान ने 1 मार्च 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए घोषणा की थी की वह एसें पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम राज बाकि हिंदू राज होगा l अगर पाकिस्तान का मतलब यह है की पंजाब में खालिस मुस्लिम राज कायम होने वाला है तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है l
2.कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था की बँटवारे बहुत अचानक हुआ ?
उत्तर : प्रारंभ में मुस्लिम लीग के नेताओं ने भी एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की माँग खास संजीदगी से नहीं उठाई थी l प्रारंभमें शायद खुद जिन्ना की पाकिस्तान की सोच को सौदेबाजी में एक पैतेरे के तौर पर प्रयोग कर रहे थे l जिसका की वे सरकार के जरिए कांग्रेस को मिलने वाली रियासतों पर रोक लगाने और मुसलमानों के लिए और रियासतें प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे l
पाकिस्तान के बारे में अपनी माँग पर मुस्लिम लीग की राय पूरी तरह सपष्ट नहीं थी l उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुत क्षेत्रों के लिए सिमित स्वायत्तता की माँग से विभाजन होने के बिच ही कम समय केवल सात साल रहे l
3. आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे ?
उत्तर : विभाजन के बारे में लोग यह सोचते थे की यह विभाजन स्थायी नही होगा अथवा शांति और कानून व्यस्था बहाल के बाद तो सभी लोग अपने मूल स्थान, गाँव, कस्बा या शहर अथवा राज्य में वापस लौट आएँगे l
वे मानते थे की पाकिस्तान के गठन का मतलब यह नहीं होगा की जो लोग एक देश के एक हिस्से से दुसरे हिस्से जाएँगे तो उनके साथ बाद में भी कठोरता होगी उन्हें बीजा और पासपोर्ट जरुरी प्राप्त करना होगा l
जो लोग गंभीर नहीं थे या राष्ट्र विभाजन के गंभीर परिणामों को जाने-अनजाने में अनदेखी कर रहे थे, वे यह मानने को तैयार नहीं थे की दोनों देशों के लोग पूरी तरह हमेशा के लिए जुदा हो जायेंगें l आम लोगों का सोचना उनके भोलेपन या अज्ञानता और यथार्थ से आँखें बंद कर लेने के समान था l
4. विभाजन के खिलाफ महत्मा गाँधी की दलील क्या थी ?
उत्तर :विभाजन के खिलाफ गाँधी जी यह दलील देते थे की विभाजन उनकी लाश पर होगा l वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे l उन्हें यह यकीन था के वे देश में सम्प्रदायिक पुन: स्थापना करने में कामयाब होंगे l लोग घृणा और हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे और सभी मिलकर दो भाइयों की तरह अपनी सभी समस्याओं का निधन कर लेंगे l
प्रारंभ में साम्प्रदायिकता सदभाव पुन: स्थापित करने में उन्हें सफलता भी मिली l उनकी आयु 77 वर्ष की थी l वह यह मानते थे की उनकी अहिंसा, शांति, साम्प्रदायिकता भाईचारा के विचारों को हिंदू और मुसलमानों दोनों ही मानते हैं l गाँधी जी जहाँ भी गए, पैदल गए l उन्होंने हर जगह हिंदू और मुसलमानों को शांति बनाए रखने, परस्पर प्रेम और एक-दुसरे की रक्षा करने को कहा l
5.विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है ?
उत्तर: भारत के विभाजन को एक ऐतिहासिक मोड़ इसलिए समझा जाता है क्योंकि विभाजन तो पहले भी हुए लेकिन यह विभाजन इतना व्यापक और खून-खराबे वाला था की दक्षिण एशिया के इतिहास में इसे एक नए ऐतिहासिक मोड़ के रूप में देखा गया
हिंसा अनेक बार हुई l दोनों सम्प्रदाय के नेता विभाजन के परिणामों के कल्पना भी नही कर सके l इस विभाजन के दौरान भडके सम्प्रदायिक दंगों के कारण लाखों लोग मारे गए और नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करने के लिए विवश हुए l
6.ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया ?
उत्तर : ब्रिटिश भारत का बँटवारा कई कारणों और कारकों की वजह से किया गया:
अंग्रेज फूट डालो और राज करो की निति अपनाते थे l उन्होंने अपनी इस निति को सफल बनाने के लिए सांप्रदायिक ताकतों, साहित्य, लेखों और मध्यकालीन भारतीय इतिहास से ऐसी घटनाओं का बार-बार उल्लेख किया जो साम्प्रदायिकता को बढ़ा सकती थीं l
मुस्लिम लीग का अस्तित्व उसके जरिये उठाई जाने वाली पाकिस्तान की माँग था l उसका दावा था की भारत में वह ही मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है और कांग्रेस का यह दावा था की अनेक मुसलमान विभाजन नही चाहते थे l
अनेक हिन्दू संगठनों ने शुद्धिकरण और मुस्लिम संगठनों ने ताबलीक आंदोलन चलाकर देश में सम्प्रदायिक माहौल को ख़राब किया l
कांग्रेसी मंत्रिमंडलों में मुस्लिम लीग को शामिल नहीं किया गया l इससे मुस्लिम लीग में निराशा हुई l उसने देश विभाजन और पाकिस्तान बनाए जाने की माँग पर जोर दिया l
7.बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहें ?
उत्तर : बँटवारे के समय औरतों के अनुभव बहुत ख़राब रहे l अनेक औरतों को अगवा कर लिया गया l उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया l अनेक युवतियों से बलात्कार या जबरन विवाह अथवा निकाह किए गए l अनेक महिलाओं के गुप्त अंग काट दिए गए l अनेकों के सामने उनके सुहाग या गोद उजाड़ दिये गये l अनेक महिलाओं से धन लुट लिए गए l अनेक महिलाओं को शांति स्थापित होने के बाद उनके परिवारजनों ने ही उन्हें स्वीकार नहीं किया l उन्हें अपना पेट भरने के लिए वेश्यावृति जैसे निंदनीय व्यवसाय को अपनाना पड़ा l
8.बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली ?
उत्तर : बँटवारे के मामले में कांग्रेस की सोच बदलने के निम्न कारण :
1.      वह मुस्लिम लीग को उसकी राष्ट्र विभाजन की माँग छोड़ने के लिए उसे राजी करने में विफल रही l
2.       मुस्लिम लीग में ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान के लिए माँगकर कुछ कांग्रेसियों के दिमाग में यह विचार उत्पन्न कर दिये की शायद कुछ समय बाद गाँधी जी देश की एकता को पुन: स्थापित करने में कामयाब हो जायेंगें l
3.      कुछ कांग्रेसी नेता सत्ता के प्रति ज्यादा लालायित थे l वे चाहते थे की चाहे देश का विभाजन हो लेकन अंग्रेज चले जाएँ और उन्हें तुरंत सत्ता मिल जाये l
4.      1946 के चुनाव में जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुत थी वहाँ मुस्लिम लीग की सफलता, मुस्लिम लीग के जरिये संविधान सभा का बहिष्कार करना, अंतरिम सरकार में शामिल न करना और जिन्ना के दोहरे राष्ट्र सिद्धांत पर बार-बार बल देना कांग्रेस की मानसिकता पर राष्ट्र विभाजन समर्थक निर्णय बनाने में सहायक रही l
9.मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए l मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है ?
उत्तर :
1.      मौखिक इतिहास हमारे देश के इतिहास की टूटी कड़ियों को जोड़ने में सहायक है l जो पुराने लोग विवरण सुनाते हैं वे अपने संस्मरणों, डायरियों, परिवार संबंधी इतिहास और अपने जरिये लिखे गए ब्यौरों को इतिहासकारों की अनेक कठिनाइयों और स्रोत संबंधी जानकारी को प्राप्ति की कठिनाइयों को दूर करने और इतिहास समझने में सहायता देते हैं l
2.      हमारे देश का विभाजन अगस्त 1947 में हुआ l लाखों लोगों ने बँटवारे की पीड़ा और उसके अश्वेत दौरे को देखा l उनके लिए केवल संवैधानिक विभाजन या राजनैतिक पार्टियों के जरिये उठाय गए दलगत राजनीती मामला नहीं था मौखिक इतिहास की गवाही देने वाले और सुनने वाले लोगों के लिए यह बदलावों का ऐसा वक्त था जिनकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी l
3.      1946 से 1950 के और उसके बाद भी जारी रहने वाले इन परिवर्तनों से निपटने के लिए विद्वानों को मनोवैज्ञानिक, भवनात्मक और सामाजिक समयोजन की आवश्यकता थी l यूरोपीयमहाधवन्सकी भाँती हमे देश विभाजन को एक  राजनीतक घटना के रूप में नही देखना चाहिए आपितु इससे गुजरने वाले के जरिये उसे दिए गए अर्थों के माध्यम से भी समझना चाहिए l किसी घटना की हकीकत को स्मृतियाँ और अनुभव से भी आकर प्राप्त होता है l





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