अध्याय:15 संविधान का निर्माण
NCERT SOLUTION CLASS XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:15 संविधान का निर्माण
1.उद्देश्य प्रस्ताव में किन आदर्शों पर जोर दिया था ?
उत्तर
:उद्देश्यप्रस्तावमेंनिम्नआदर्शोंपरजोरदियाथा:
1.
13 दिसम्बर, 1946 को
जवाहर लाल नेहरु ने संविधान सभा के सामने “उद्देश्य प्रस्ताव” प्रस्तुत किया l यह
एक ऐतिहासिक प्रस्ताव था जिसमें आजाद भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रुपरेखा
पेश की गई थी l
2.
इसप्रस्तावना में भारतकोस्वतंत्र
सम्प्रभु गणतंत्र घोषित किया गया थाl नये संविधान की प्रस्तावना में देश के सभी
नागरिकों को न्याय, समानता व स्वतंत्रता का भी भरोसा दिया गया था l
3.
संविधान की प्रस्तावना
में यह भी वायदा किया गया था की अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों एंव दलित
और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त रक्षात्म प्रावधान भी किए जाएँगे l
2.विभिन्न समूह ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को किस तरह परिभाषितकर रहे थे ?
उत्तर
:
1.
कुछ लोग मुसलमानों को ही
अल्पसंख्यक कह रहे थे उनके अनुसार उनका धर्म रीती-रिवाज आदि हिंदुओं से बिलकुल अलग
है l
2.
कुछ लोग दलित वर्ग के
लोगों को हिंदुओं से अलग करके देख रहे थे और वह उनके लिए अधिक स्थानों का आरक्षण
चाहते थे l
3.
कुछ लोग आदिवासियों को
मैदानी लोगों से अलग देखकर आदिवासियों को अलग आरक्षण देना चाहते थे l
4.
सिख लीग के कुछ सदस्य सिख
धर्म में अनुयायियों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और अल्पसंख्यक को सुविधाएँ देने
की माँग कर रहे थे l
3.प्रोतों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए ?
उत्तर
:
1.
सन्तनम का प्रथम तर्क :
राज्यों के अधिकारों की सबसे शक्तिशाली हिमायत मद्रास के सदस्य केसन्तनम ने पेश की
l उन्होंने कहा की केवल राज्यों को बल्कि केंद्र को मजबूत बनाने के लिए भी
शक्तियों का पुनर्वितरण जरुरी है l “यह दलील एक जिद से बन गई है की तमाम शक्तियाँ
केंद्र को सौंप देने से वह मजबूत हो जाएगा l” सन्तनम ने इसे एक गलतफहमी बताई l
2.
सन्तनम का दूसरा तर्क
: जहाँ तक राज्यों का सवाल है, सन्तनम का मानना था की शक्तियों का मौजूदावितरण
उनको पंगु बना देगा l राजकौशीय प्रावधान प्रांतों को खोखला कर देगा क्योंकि भू-राजस्व के आलावा ज्यादातर कर केंद्र सरकार के अधिकार में दे दिए गए हैं l यदि
पैसा ही नही होगा तो राज्यों में विकास परियोजनाएँ कैसे चलेंगी l
3.
सन्तनम का तृतीय तर्क
: सन्तनम नेकहाकी अगर पर्याप्त जाँच-पड़ताल किए बिना शक्तियों का पक्षतावित वितरण
लागू किया गया तो हमारा भविष्य अंधकार में पड़ जाएगा l उन्होंने कहा की कुछ ही
सालों में सारे प्रांत “केन्द्र के विरुद्ध” उठ खड़े होंगे l
4.महात्मा गाँधी को एसा क्यों लगता है की हिन्दुस्तानी राष्ट्रिय
भाषा होनी चाहिए ?
उत्तर
:
1.
गाँधीजी जी मानते थे की
हिन्दुस्तानी भाषा में हिंदी के साथ साथ उर्दू भी शामिल है और ये दो भाषाएँ मिलकर
हिन्दुस्तानी भाषा हैं l
2.
वह हींदु और मुसलमान
दोनों केद्वारा प्रयोग में लाई जाती है और दोनों की संख्या अन्य भाषाओकी
तुलना में अधिक है l यह हिंदू और मुसलमानों के साथ-साथ उत्तर और दक्षिण से भी खूब
प्रयोग में लाई जाती है l
3.
गाँधी जी यह जानते थे की
हिंदी में संस्कृत और उर्दू में संस्कृत के साथ-साथ अरबी फारसी के शब्द मध्यकाल से
प्रयोग हो रहे हैं राष्ट्रिय आंदोलन के दौरान कांग्रेस ने भी यह मान लिया था की
राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी ही बन सकती है l
5.वे कौन-सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय
किया l
उत्तर
:
1.
कांग्रेस पार्टी देश की
एक प्रमुख राजनैतिक ताकत थी जिसने देश के संविधान को लोकतांत्रिक गणराज्य,
धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने में भूमिका अदा की थी l
2.
मुस्लिम लीग ने देश का
बँटवारा किया लेकिन उदारवादी मुसलमान और वे मुस्लिम जो भारत के विभाजन के विरोधी
थे उन्होंने भी भारत को धर्म निरपेक्ष बनाए रखने तथा सभी नागरिकों को अपनी
सांस्कृतिक, धार्मिक पहचान बनाए रखने में संविधान के माध्यम से आश्वस्त किया l
3.
जो नेता दलित या तथाकथित
दलित और हरिजनों के पक्षधर थे उन्होंने संविधान को कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक,
आर्थिक और राजनीतिक समानता और अन्याय दिलाने वाला, आरक्षण की व्यवस्था करने वाला,
छुआछूत का उन्मूलन करने वाला स्वरूप प्रदान करने में योगदान दिया l
6.दलित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर
चर्चा कीजिए l
उत्तर
: दलित समूहों की सुरक्षा में विभिन्न दावे किए गए :
1.
राष्ट्रिय आंदोलन के
दौरान ङॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलित जातियों के लिए पृथक जातियों की माँग की थी
जिसकी महात्मा गाँधी ने यह कहते हुए खिलाफत की थी की ऐसा करने से यह समाज स्थायी
रूप से शेष समाज से कट जाएगा l
2.
संविधान सभा में बैठें
दलित जातियों के कुछ प्रतिनिधि सदस्यों का आग्रह था की अस्पृश्यों की समस्या को
केवल संरक्ष्ण और बचाव से हल नहीं किया जा सकता l उनकी अपंगता के पिछे जाती विभाजन समाज के
समाजिक कायदे कानूनों और नैतिक मूल्य मान्यताओं का हाथ है l समाज ने उनकी सेवाओं
और श्रम का उपयोग किया है लेकिन उन्हें सामाजिक तौरपर अपने से दूर रखा गया है l
3.
दलित जातियों के
प्रतिनिधि सदस्य जो नागप्पा ने अपने समुदाय के लोगों के पक्ष में कहा था की हम सदा
कष्ट उठाते रहे हैं पर अब कष्ट उठाने को तैयार नही हैं l हमें आपकी जिम्मेदारियों
का अहसास हो गया है l हमें मालूम है की अपनी बात कैसे मनवानी है l
7.संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनितिक का परिस्थति
और एक मजबूत केंद्र सरकार की जरूरत के बीच क्या संबंध देखा ?
उत्तर
:
1.
संविधान सभा में
प्रान्तों के अधिक शक्तिशाली भाग से सभा में तीसरी प्रतिक्रिया सामने आने लगी l वे
लोग देश की राजनितिक परिस्थतियों को देखकर एक केंद्र सरकार की आवश्यकता को
रेखांकित करने लगे l
2.
ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमेन
डॉ.बी.आर. अम्बेडकर ने पहले ही घोषणा की थी के वे एक शक्तिशाली और एकीकृत केंद्र
1935 के इंडियन एक्ट के तहत तब से ही देश में एक शक्तिशाली केंद्र चाहते थे l
3.
सन 1946और 47में जो देश
के विभिन्न भागों और उनकी सडकों पर साम्प्रदायिकदंगों और हिंसा के दृश्य दिखाई दे रहे
उससे देश के टुकड़े-टुकड़े हो रहे थे उसका हवाला देते हुए बहुत सारे सदस्यों ने
बार-बार यह कहाकी केंद्र की शक्तियों में अत्यधिक बढ़ोतरी होनी चाहिए ताकि वह सख्त
हाथों से देश में हो रही साम्प्रदायिक हिंसा की रोक सके l
4.
प्रान्तों के लिए जो लोग
ज्यादा शक्ति और अधिकारों की माँग कर रहे थे उन्हें उत्तर देते हुए गोपाल स्वामी
आयर ने कहा“केंद्र
आधिक से अधिक सुदृढ़ होना चाहिए”
l
5.
इसी संदर्भ में संयुक्त
प्रांत के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने इस बात पर जोर डाला की केंद्र का शक्तिशाली
होना आवश्यक है ताकि वहसम्पूर्ण देश के हित में योजना बना सके, उपलब्ध आर्थिक
संसाधनों को जूटा सके l एक उचित शासन व्यवस्था स्थापित कर सके तथा ऐसी परिस्थति
में या देश बाहरी आक्रमणों का शिकार हो जाए तो वह मजबूती से देश को विदेशी हमलों
से बचा सके l
8.संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता
निकाला ?
उत्तर
: भाषा के विवाद को हल करनेकेलिएनिम्नलिखितउपायनिकालेगए।
1.
भारत प्रारंभ से ही एक
बहुत भाषा-भाषी देश है l देश के विभिन्न प्रांतों और हिस्सों में लोग अलग-अलग
भाषाओँ का प्रयोग करते हैं, जिस समय संविधान सभा के समक्ष राष्ट्र की भाषा का
मामला आया तो इस मुद्दे पर अनेक महीनों तक गर्म-गर्म बहस हुई, कई बार काफी तनाव
पैदा हुए l
2.
आजादी से पूर्व 1930 के
दशक तक भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने यह स्वीकार कर लिया था की हिंदुस्तानी को
राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिल जायगा l राष्ट्रपति महात्मा
गाँधी का मानना था की प्रत्येक भारतीय को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी
से समझ सकें l हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिन्दुस्तानी भाषा भारतीय जनता की
बहुत बड़े हिस्से की भाषा थी और अनेक संस्कृतियों के आदान प्रदान से समृद्ध हुई एक
साझी भाषा थी l
3.
जैसे जैसे समय बिता,
हिन्दुस्तानी भाषा ने अनेक प्रकार के स्रोतों ने नए-नए शब्दों कोअपने में समा लिए
और उसे आजादी के आने तक बहूत सारे लोग समझने लगे l गाँधी जी को ऐसा लगता था की यही
भाषा देश के समुदायों के बिच विचार-विमर्श का माध्यम बन सकती है l यह हिंदू और
मुसलमानों को एक जुट कर सकती है l
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