अध्याय:4 विचारक विश्वास और इमारतें
NCERT SOLLUTION CLASS
XII HISTORY IN HINDI
अध्याय:4 विचारक
विश्वास और इमारतें
1.क्या
उपनिषेदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे ?अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए l
उत्तर:उपनिषेदों के दार्शनिकों के
बौद्ध के जरिये प्रस्तुत किये गये नियतिवादी और भौतिकवादी विचार भिन्न नहीं थे l निम्नलिखित तर्क l
1.
जैनियों
और बौद्ध के मुलभुत दार्शनिक विचार वर्धमान महावीर के जन्म से पूर्व ही उत्तर भारत
मेंविद्यमान थे l
संसार लाखों वर्षों से निरन्तर चला आ
रहा है l ये सभी दार्शनिक मानते हैं l
2.
अहिंसा
को जैन धार्मिक ग्रन्थ, बौद्ध धार्मिक ग्रन्थ
एंव हिन्दुओं के उपनिषदों में भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं l
3.
उपनिषेद
कर्म सिद्धांत पर विशवास करते हैं l
इसका शाब्दिक अर्थ है की हर व्यक्ति को बिना फल चिंता किये हुए कर्म
करना चाहिए l भाग्यवादी मानते हैं की सब कुछ पूर्व निर्धारित
है l किसी भी व्यक्ति को अपने भाव या भविष्य की चिंता नही
करनी चाहिए l
4.
भाग्यवादी
तथा भौतिकवादी हिन्दुओं के दार्शनिकों की भाँती मानते हैं की मानव शारीर चार
तत्वों-पृथ्वी, जल, वायु एंव आकाश से बना है l
5.
निर्वाण
या मोक्ष जीवन का अंतिम उद्देश्य है l
बौद्ध धार्मिक ग्रंथ, जैन धार्मिक ग्रंथ तथा
हिन्दू धार्मिक ग्रंथ एंव उपनिषेद इस दार्शनिक सिद्धांत में यकीन करते हैं l
2.जैन
धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं को संक्षेप में लिखिए l
उत्तर:
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ
1.
जैन
धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा या अवधारणा यह है की सम्पूर्ण संसार प्राणवान है
l यहाँ तक कि पत्थर,
चट्टान और जल में भी जीवन होता है ।
2.
जीवों
के प्रति आहिंसा-खासकर इंसानों, जानवरों पेड़-पौधों और कीड़े- मकोड़ों को न मारना जैन दर्शन का केंद्र
बिंदु है l वस्तुत: जैन अहिंसा के सिद्धांत ने
सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन परम्परा को प्रभावित किया है
3.
जैन
मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की जरूरत होती है l यह संसार के त्याग से ही संभव हो पाता है l
इसलिएमुक्ति के लिए विहारों में निवास
करना एक अनिवार्य नियम बन गया l
3.साँची
के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए l
उत्तर :
साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल
की बेगमों की भूमिका l
1.
भोपाल
की नवाब शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ताज-उल इक़बाल तारीख भोपाल से l 1876 में एच. डी. ब्रास्तो ने उसका अनुवाद
किया l बेगम साँची के स्तूप की प्रसिद्धि एवं जानकारी का
प्रचार-प्रसार करना चाहती थी l
2.
उन्नीसवीं
सदी के यूरोपियों में साँची के स्तूप को लेकर काफी दिलचस्पी थी l फ्रांसीसियों ने सबसे अच्छी हालत में बचे
साँची के पूर्वी तोरण द्वार को फ्रांस के संग्राहलय में प्रदर्शित करने के लिए
शाहजहाँ बेगम से फ्रांस ले जाने की इजाजत माँगी l कुछ समय के
लिए अंग्रेजों ने भी एसे कोशिश की
3.
भोपाल
के शासकों शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम ने इस प्राचीन
स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान दिया l
आश्चर्य नहीं कि जॉन मार्शल ने साँची पर
लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को सुल्तान जहाँ को समर्पित किया l
4.
सुल्तानजहाँ
बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया l वहाँ रहते हुए ही जॉन मार्शल ने उपर्युक्त
पुस्तकें लिखीं l इस पुस्तक के विभिन्न खंडों के प्रकाशन में
भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया l तो यदि ये स्तूप समूह
बना रहा है तो इसके पीछे कुछ विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका है l
5.
बौद्ध
धर्म के इस महत्त्वपूर्ण केंद्र की खोज से आरंभिक बौद्ध धर्म के बारे में हमारी
समझ में महत्त्वपूर्ण बदलाव आये l आज यह जगह आर्कियोलौजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सफल मरम्मत और संरक्षण का
जीता जागता उदाहरण है l
4.निम्नलिखित
संक्षिप्त अभिलेख को पढ़ें और जवाब दीजिए l
महाराज हुविश्क (एक
कुस्य्हन शासक ) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दीन
तिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्य, तिपिटक जानने वाली बुद्धिमिता के बहन की बेटी
भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्व की मूर्ति स्थापित
की l
1.
धनवती ने अपने अभिलेख कि तारीख कैसेनिश्चित की ?
2.
आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्व की मूर्ति क्यों स्थापित की ?
3.
वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती हैं ?
4.
वे कौन-से बौद्ध ग्रन्थों को जानतीं थीं ?
5.
उन्होंने ये पथ किस्से सिखा थे ?
उत्तर :
1.
धनवती
ने अपने अभिलेख की तारीख कुछ अलग तरह से लिखी है जोकि उसे अपने मधुवनक स्थान पर
लगाया जाता था l गर्म मौसम का प्रथम
महीने के आठवें दिन और 33 वर्ष में महाराज हुविष्का ने इसे
बनवाया l यह एक कुषाण शासक था l
2.
बोधिसत्व
की मूर्ति इसलिए स्थापित की गयी है की धीरे धीरे बौद्ध धर्म में महिलाओं भिक्षुओं
का प्रभाव और मूर्ति पूजा बढ़ रही थी l
उसका सम्राट बौद्ध धर्म के सम्प्रदय के अनुयायी थे l यह सम्प्रदाय दिन-प्रतिदिन कुषाण राजाओं के शासनकाल में लोकप्रिय हुआ l
3.
इस
अभिलेख में उसने अपने मौसी बुद्धिमता के नाम का उल्लेख किया है l वह भी एक बौद्ध भिक्षुनी थी l उसने भिक्षुनी वाला और और उसने अभिभावकों का भी उल्लेख किया है l
4.
धनवती
बौद्ध धर्म के ग्रंथ त्रिपिटक को जानती थी l
5.
उसने
यह धार्मिक ग्रंथ के भिक्षुनी बुद्धिमता अपनी मौसी से सिखा था धनवती भिक्षुनी बाला
की पहली महिला शिष्य थी l
5. आपके
अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते थे ?
उत्तर:
1.
हम
सोचते हैं की पुरुष और महिलाओं ने बौद्ध संघ में इसलिए प्रवेश किया क्योंकि वहाँ
वे धर्म का अधिक नियमित और व्यवस्थित ढंग से अध्यन,
मनन, उपासना, धार्मिक
विषयों पर विचार-विमर्श, बौद्ध धर्म के दर्शन आदि प्रचारकों
और अध्यापकों के माध्यम से जन और व्यवहार में लाया जा सकता है
2.
बौद्ध
संघ एक लोकतांत्रिक संस्था थी इसके प्रदेश के लिए कुछ नियम और उपनियम रचे गये थे l हर बौद्ध भिक्षुक को संघ में रहकर सभी नियमों
का पालन करना, साधारण जीवन व्यतीत करना अनुशासन में रहना,
उचित ढंग से अपने विचारों को अभिव्यक्त करना और भिक्षा माँगकर अपने
लिए स्वंम भोजन आदि जुटाना होता था संघ में रहकर बौद्ध भिक्षुक अध्यन, अध्यापन कर सकते थे और निर्वाण के लिए बताये गये मार्ग, सिद्धांतों और शिक्षाओं का अनुसरण करके मोक्ष प्राप्त कर सकते थे l
6.साँची
की मूर्ति कला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती हैं ?
उत्तर:
1.
बौद्ध
साहित्य से हमे साँची की मूर्ति कला के बारे में जानकारी मिलती है l इन ग्रंथों के अध्यन के बाद इस स्तूप की
मूर्तियाँ में उल्लेखित सामाजिक और मानव जीवन की अनेक बातें दर्शकों की समझ में
आसानी से आ जाती हैं
2.
पहली
बार देखने पर तो इस मूर्तिकला अंश में फूस की झोंपड़ी और पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य
का चित्रण दीखता है परंतु उन कला इतिहासकारों,
जिन्होंने साँची की इस मूर्तिकला का गहराई से अध्यन किया है ,
वे इसे वेसान्तर जातक से लिया गया एक दृश्य बताती हैं l
3.
यह
कहानी एक ऐसे दानी राजकुमार के बारे में है जिसने अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को दे
दिया और खुद अपने पत्नी और बच्चों के साथ जंगलों में रहने लगा l जैसा की इस उदाहरण से सपष्ट है अक्सर
इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्यख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वाराकरते हैं l
4.
बौद्ध
मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकरों को बुद्ध के चरित लेखन के बारे में समझ
बनानी पड़ी l बौद्ध चरित लेखन के
अनुसार एक वृक्ष के निचे ध्यान करते हुए बुद्ध को सान प्राप्ति हुई l
कई प्रारंभिक मूर्तिकारों के बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी
उस्तिथि प्रतिको के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया l
7.चित्र 1
और 2 में साँची से लिए दो परिदृश्य दिये गये
हैं l आपको इनमें क्या नजर आता है ?वास्तुकला,
पेड़-पौधे और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धंधों को
पहचानकर यह बताएं की इनमें से कौन-से शहरी परिदृश्य हैं ?
उत्तर :
1.
दोनों
चित्रों को देखने के बाद यह जान पड़ता है की हमारे अध्यन के कालांश (600 ई. पू. से 600 ई. तक )
भारतीय वास्तुकला बहुत विकसित हो चुकी थी l इसमें कुछ
चित्र पौधे और मवेशियों से सबंधित हैं l इसे किसी स्तूप अथवा
चैत्य की दीवारों पर उसकी भव्यता को बढ़ाने के लिए लगाये थे l
2.
चित्र
1 में पौधों भली भाँती
सपष्ट रूप से दिखाने का प्रयास किया गया है l बुद्ध ने पौधों
के सपष्ट महत्व और लाभ को समझते हुए उन्हें विभिन्न चित्रकारियों के माध्यम से
प्रदर्शित करवाया ताकि समाज के लोग उनके महत्व को समझें और पेड़-पौधों जीवित
प्राणियों को (पशु- पक्षियों और मानव जाती के लिए ) उपयोगी माना जायें l इस चित्र में विभिन्न प्रकार के मवेशियों जैसे दुधारू पशु, हिरण, गाय इत्यादि भी बनाई गई हैं l उन्हें विभिन्न भिक्षु-भिक्षुणियों के जरिये घेरा हुआ है और उनके जरिये
बनाये गये मवेशियों को सुरक्षित स्तिथि में दिखाया गया है l यह
चित्र बुद्ध धर्म में अहिंसा के सिद्धांत और जीवो के संरक्षण के महत्व को दर्शाते
हैं l
3.
चित्र
2 को देखकर यह जान पड़ता
है की यह चित्र स्थापत्य के साथ-साथ मूर्ति कला और चित्र कला की स्थिति और विकास
को अभिव्यक्त करता है l जैसा की इसमें कुछ लंबे-लंबे स्तंभ
और उनके निचे जाली का सुन्दर कार्य दिखाया गया है l स्तंभों
के माध्यम से विभिन्न बौद्ध धर्म के अनुयायियों को विभिन्न शारीरिक आकृतियों
में-बैठे हुए, खड़े हुए, एक दूसरों को
निहारते हुए विभिन्न-विभिन्न आव -भाव को अभिव्यक्त करते
हुए दिखाया गया है l इसी चित्र के निचले भाग में कुछ पतले
अथवा मध्य आकार के स्तंभ,भिक्षुणियों के विभिन्न आकर,
हाव-भाव और किसी इमारत के डिजायन को दिखाया गया है
4.
अत:
चित्र 1 में राजदरबार और
ग्रामीण क्षेत्रों से चित्र 2 में राजा और शहरी परिदृश्य और
महलों से संबंधित हैं l
8.वैष्णववाद
और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए l
उत्तर : पृष्ठभूमि: मुक्तिदाता की कल्पना सिर्फ बौद्ध धर्म तक
सीमित नहीं थी lहम पाते हैं कि इसी तरह के विश्वास एक अलग
ढंग से उन परम्पराओं में भी विकसित हो रहे थे जिन्हें आज हिन्दू धर्म के नाम से
जाना जाता है l
1. इसमें
वैष्णव (वह हिन्दू परम्परा जिसमें विष्णु को सबसे महत्त्वपूर्ण देवता
माना जाता है)और शैव (वह संकल्पना जिसमे
शिव परमेश्वर है)परम्पराएँ शामिल हैं l इनके अंतर्गत एक
विशेष देवता की पूजा को खास महत्त्व दिया जाता थाl
इस प्रकार की अराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का रिश्ता प्रेम और
समर्पण का रिश्ता माना
जाता था l इसे भक्ति कहते हैं l
मूर्तिकला और स्थापत्य :
1.
वैष्णवमत : वैष्णव वाद में कई अवतारों के इर्द-गिर्द
पूजा पद्धतियाँ विकसित हुई l इस परंपरा के अंदर दस अवतारों
की तुलना है l यह माना जाता था की पापियों के प्रभाव के चलते
जब दुनिया में अव्यवस्था और नाश की स्थति आ जाती थी तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान
अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे l
2.
शैवमत : कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया
गया है l दुसरे देवताओं की भी मूर्तियाँ बनीं l शिव को उनके प्रतिक लिंग के रूप में बनाया जाता था लेकिन उन्हें कई बार
मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है
3.
मूर्तिकला
और प्रतिमओं की पूजा-अर्चना :इन मूर्तियों के अंकन का मतलब समझने के लिए
इतिहासकारों को इनसे जुडी कहानियों से परिचित होना पड़ता है l इनमे देवी-देवताओं की भी कहानियाँ हैं l
सामान्यत: इन्हें संस्कृत में श्लोकों के रूप में लिखा गया है l
पुराणों की ज्यादातर कहानियाँ लोगों के आपसी मेल-मिलाप से विकसित है
4.
हिन्दू
मंदिरों का निर्माण:देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए सबसे पहले मन्दिर भी
बनाये गये l शुरू के मंदिर एक
चौकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था l इसमें
एक दरवाजा होता था जिससे उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो सकता
था l धीरे-धीरे गर्भगृह के उपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा
जिसे शिखर कहा जाता था l मंदिर की दीवारों पर अक्सर भित्ति
चित्र उत्कीर्ण किये जाते थे l शुरू-शुरू के मंदिरों की एक
खास बात थी की इनमें से कुछ पहाड़ियों को काटकर खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप
में बनाए जाते थे इसका सबसे बड़ा उदाहराण आठवीं सदी के कैलाशनाथ ( शिव का एक नाम ) के मंदिर में नजर आता हैं
जिसमें पूरी पहाड़ी को काटकर उसे मंदिर का रूप दे दिया गया था l
9. स्तूप
क्यों और कैसे बनाये जाते थे ?चर्चा कीजिए l
उत्तर:ऐसी कई वस्तु अन्य जगहें थी
जिन्हें पवित्र माना जाता था l इन जगहों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ या उनके के जरिये
प्रयुक्त सामान गाड़ दिये जाते थे इन टीलों को स्तूप कहते थे l
1.
स्तूप
क्यों बनाये जाते थे :-
- स्तूप बनाने की प्रक्रिया बुद्ध
से पहले की रही होगी, लेकिन वह बौद्ध
धर्म से जुड़ गयी चूँकि उनमे ऐसे अवशेष रहते थे जिन्हें पवित्र समझा जाता था l
अशोकावदान नाम एक बौद्ध ग्रंथ के अनुसार अशोक ने बुद्ध के
अवशेषों के हिस्से हर महत्त्वपूर्ण शहर में बाँटकर उनके ऊपर स्तूप बनाने का
आदेश दिया l
2.स्तूप कैसे बनाये गये :-
- स्तूपों की विदिकाओं और स्तंभों
पर मिले अभिलेखों से इन्हें बनाने और सजाने के लिए दिये गये दान का पता चलता
है l कुछ दान राजाओं
के जरिये दिये जाते थे तो कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों ने भी दिये l
इन इमारतों को बनाने में भिक्खुओं और भिक्खुनियों ने भी दान
दिया l
Very short,short and multiple coice questions should also be given
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