अध्याय:5 यात्रियों के नज़रिए
NCERT SOLUTION CLASS
12 HISTORY IN HINDI
अध्याय:5 यात्रियों के
नज़रिए
1.किताब
उल हिन्द पर लेख लिखिए l
उत्तर :
1.
लेखक
ओर भाषा :-
किताब उल हिन्द प्रसिद्ध यात्री, विद्वान और इतिहासकार अल-बिरूनी की कृति है l इसमें विद्वान् यात्री ने ग्यारहवीं शताब्दी के भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं, सांस्कृतिक जीवन, भाषा, कला आदि का विवरण छोड़ा है l अरबी में लिखी गयी इस किताब की भाषा सरल और स्पष्ट है l
किताब उल हिन्द प्रसिद्ध यात्री, विद्वान और इतिहासकार अल-बिरूनी की कृति है l इसमें विद्वान् यात्री ने ग्यारहवीं शताब्दी के भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं, सांस्कृतिक जीवन, भाषा, कला आदि का विवरण छोड़ा है l अरबी में लिखी गयी इस किताब की भाषा सरल और स्पष्ट है l
2.
विषय
सामग्री :-
यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और
दर्शनों, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीनिया रीती-रिवाजों तथा प्रथाओं,
सामाजिक जीवन भार-तौल
तथा मापन विधियाँ, मूर्तिकला, कानून,
मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के साथ
अधर पर अस्सी अध्याओं पर आधारित है l इनमे दंतकथाओं से लेकर खगोल-विज्ञान और चिकित्सा संबंधी
कृतियाँ सभी शामिल है l
3.शैली :
अल-बिरूनी ने प्रत्येक अध्याय में एक
विशिष्ट शैली का प्रयोग किया जिसमें आरंभ में एक प्रश्न होता था , संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ
तुलना l आज के कुछ
विद्वानों का तर्क है की जो अपनी स्पष्टता के लिए
उल्लेखनीय है, का एक मुख्य कारण अल-बिरूनी का
गणित की ओर झुकाव
था l
2. इब्न-बतूता
और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तांत लिखे थे ,उनकी तुल्लना कीजिए तथा अंतर बताइए l
उत्तर :
तुलना :
1.
इब्न-बतूता
भारत के चौदहवीं शताब्दी के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के विषय में प्रचुर और
रोचक जानकारियाँ प्राप्त करना चाहता था l
वे पुस्तकों के ज्ञान की अपेक्षा यात्राओं से अनुभव के ज्ञान को
अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था l यात्रा करना उसका शोक था
l वहदूर दूर के देशों में जाकर उनके लोगों के विषय में
जानकारी हासिल करना चाहता था तथा लोगों की संस्कृतियों, विचारों,
मान्यताओं को कुशलतापूर्वक जानना चाहता था वह लंबी-लंबी यात्रा करके
अपने साहस का परिचय देना चाहता था l
2.
इब्न-बतूता
इस्लाम का पक्का अनुयायी था उसने हज कीया और अनेक मुस्लिम देशों की यात्रा की l उसने मुहम्मद तुगलक के कल में न्यायधीश के
कर्तव्य को भी निभाया और उनके आदेश से चीन की यात्रा की और वहाँ के सामाजिक जीवन
को समझने का प्रयास किया l
बर्नियर की यात्रा और दृष्टिकोण :
1.
बर्नियर
एक चिकित्सक एंव इतिहासकार था l उसकी यात्रा का उद्देश्य मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश करना था l
वः अनेक देशों की यात्रा करके उनकी तुलना यरोपिय स्थिति से करना
चाहता था जैसा की उसने भारत की स्तिथि की तुलना यूरोप में हुए विकास से करते हुए
भारतीय स्थिति को दयनीय बताया l
2.
इब्न-बतूता
के विपरीत बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परंपरा से सबंधित था l उसने भारत में जो भी देखा रूप से यूरोप और
विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा विभिन्नता को उजागर के
प्रति अधिक चिंतित था l
3.बर्नियर
के वृतांत से उभरनी वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए l
उत्तर:
1.
सत्रहवीं
शताब्दी में जनसंख्या का पंद्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था l यह ओसत उसी समय पश्चिमी युरोप की नगरीय
जनसंख्या के अनुपात से अधिक था l बर्नियर मुगलकालीन शहरों को
“शिविर नगर” कहता है, जिससे उसका आशय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए
राजकीय शिविर पर निर्भर थे l उसका विश्वास था की ये राजकीय
दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके खिन और चले जाने के बाद तेजी से
प्त्निन्मुख हो जाते थे l
2.
उसने
यह भी सुझाया कि इनकी सामाजिक और आर्थिक नीव व्यवहार्य नहीं होती थी और ये राजकीय
प्र्कश्र्म पर आक्षित रहते थे l
3.
भूस्वामी
के प्रश्न की तरह ही बर्नियर एक अति सरलीकृत चित्रण प्रस्तुत कर रहा था l वास्तव में सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में
थे: उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह
नगर, धार्मिक केंद्र आदि l
4.
अन्य
शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक,
अध्यापक, चित्रकार, वास्तुविद,
संगीतकार, सुलेखक आदि थे जहाँ कई राजकीय
प्रश्रय पर आश्रित थे l
4. इब्न-बतूता
के जरिये दास प्रथा के संबंध में दिए गये साक्ष्यों का विवेचन कीजिए l
उत्तर :
1.
जिन यारियों ने अपने लिखित वृत्तान्त छोड़े वे
सामान्यता पुरुष l थे जिन्हें उपमहाद्वीप में महिलों
की स्थिति का विषय रुचिकर और कभी-कभी जिज्ञासापूर्ण लगता था l कभी कभी वे सामाजिक पक्षपात को ‘सामान्य’ परिस्थिति मन लेते थे
2.
इब्न
बतूता के विवरण से प्रतीत होता है की दासों में काफी विभेद था l सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ
संगीत और गायन में निपुण थीं , और इब्न-बतूता सुल्तान की बहन
के शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से खूब आनंदित हुआ l
3.
दासों
को सामान्यता : घरेलू श्रम के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था, और इब्न-बतूता ने इनकी सेवाओं को, पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने में विशेष रूप से
अपरिहार्य पाया l घरेलू श्रम के दासों की कीमत बहुत कम होती
थी l\
5. सती
प्रथा के कौन से तत्त्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी और खिंचा ?
उत्तर :बर्नियर जैसे लेखकों ने तत्कालीन भारतीय महिलाओं की दयनीय
स्थिति की और यदि उनका ध्यान खिंचा तो यह तो कोई आश्चर्यजनक बात नही होगी उन्होंने
तो सती प्रथा को विस्तृत विवरण के लिए चुना l
उसने लिखा य्द्द्पे कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा
लेती थीं लेकिन अन्य विधवा महिलाओं कों तुरंत ही जल भरने के बाध्य किया जाता था l
6. जाती
व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी के विचारों की व्याख्या पर चर्चा कीजिए l
उत्तर :
1.
अल-बिरूनी
ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के माध्यम से जाति व्यवस्था की समझने और
व्याख्या करने का प्रयास किया l उसने लिखा के प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों के मान्यता थी :
घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, आनुष्ठानिक
पपरोहित था चिकित्सक, खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और
अंत में कृषक तथा शिल्पकार l दूसरों शब्दों में वो यह दिखाना
चाहता था की ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सिमित नही थे l उसने दर्शाया के इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता है उनमे
भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं l
2.
जाती
व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया उसने
लिखा की हर वो वस्तु जो सपवित्र हो जाती है अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पाने
का प्रयास करती है l और सफल होती है l
अल-बिरूनी जोर देकर कहता है की यदि एसा नही होता तो प्रथ्वी पर जीवन
असंभव होता l उसके अनुसर जाती व्यवस्था में सन्निहित
अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी l
7. क्या
आपको लगता है की समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली जानकारी प्राप्त करने में
इब्न बतूता का वृतांत सहायक है ?अपने उत्तर के कारण दीजिए l
उत्तर :
1.
इब्न-बतूता
ऐतिहासिक वर्णन अनेक दृष्टियों से उपयोगी माना जाता है l उसने भारत के दो फलों नारयल और पण के बारे में
बड़ा सपष्ट विवरण दिया है उसने भारत के अनेक शहरों की चकाचौंद चमक आदि के बारे में
उपयोगी विवरण दिया है
2.
जब
चौदहवीं शताब्दी में इब्न-बतूता दिल्ली आया था उस समय तक पूरा उपमहाद्वीप एक ऐसे
वैश्विक संचार तंत्रका हिस्सा बन चूका था जो पूर्व में चीन से लेकर पश्चिमी में
उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका था यूरोप तक फैला हुआ था
3.
इब्न-बतूता
इस प्रकार दिल्ली शहर वर्णन करता है की दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैली घनी आबादी
वाला क्षेत्र है शहरों के चारों ओर बने दीवार अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ है l और इसके भीतर रति के पहरेदार के कक्ष हैं प्राचीर के भीतरी भाग में
घुड़सवार तथा पैदल सैनिक शहर के एक से दुसरे छोर तक आते जाते हैं l
4.
प्राचीर
में खिड़कियाँ बनी हैं जो शहर की ओर खुलती हैं और इन्हीं खिडकियों के माध्यम से
प्रकाश अंदर आता है l प्राचीर का निचला भाग
पथर से बन है जबकि उपरी भाग ईंटों से l इसमें एक दूसरों के
पास पास कई मीनारे हैं
5.
इब्न-बतूता
ने उपमहाद्वीपों के शरों को घनी आबादी वाला शहर बताया है इब्न-बतूता से एसा प्रतीत
होता है की अधिकांश शहरों में भीड़ वाली सडकें तथा चमक-दमक वाले रंगीन बजार थे जो
विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे
8. चर्चा कीजिए की
बर्नियर का वृतांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निमित
करने में सक्षम करता है ?
उत्तर : बर्नियर का विवरण भारतीय
इतिहासकारों के लिए आंशिक रूप से ही ही उपयोगी माना जा सकता है क्योंकि उसका विवरण
दोषरहित नहीं है l वह एक पाश्चात्य विद्वान् इतिहासकार था
1.
वह
उसने जो विभिन्नताएँ भारत और यूरोप में पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध करता है
जिससे वह भारत को साडी पश्चिम दुनिया से निम्न कोटि का प्रतीत हो, ऐसी स्थिति में
रखता है l
2.
बर्नियर
को भूमि स्वामित्व के प्रश्न के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी l वह साडी भूमि का
स्वामी मुगल सम्राट को मानता है जो ठीक नहीं है l वः कहता है की राजकीय भू-स्वामित्व
के कारण भुमिधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते l
3.
उसका
यह विवरण सही साबित हुआ क्योकि उस समय किसान गरीब थे l गरीबी के कारण वे भूमि
सुधारों में रूचि नहीं लेते थे l इंग्लैंड जैसे देश की तरह यहाँ कृषि क्रांति नहीं
हुई l यह विवरण ठीक जन पड़ता है l लेकिन मुगल राजा भिखारियों और क्रूर लोगों का
राजाथा l यह विवरण ग्रामीण किसानों के लिए ठीक नही जान पड़ता l
4.
अकबर
के काल में भू-राजस्व अधिक नहीं था l फिरोजशाह तुगलक, शेरशाह सूरी और कुछ अन्य
शासकों ने सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने में रूचि ली l
अत: हमे ये पता चलता है की भारतीय
इतिहासकारों के लिए बर्नियर का विवरण किसी सीमा तक उपयोगी था l
9.यह
बर्नियर से लिया हुआ एक उदाहरण है l
ऐसे लोगों के जरिये
सुन्दर शिल्पकरिगिर के बहुत उदाहरण है जिनके पास ओजरों का अभाव
है........................................... मई अक्सर इनके चित्रों की सुंदरता, मुदुलता तथा सूक्ष्मता से
आकर्षित हुआ है l
उसके जरिये अलिखितशिल्प
कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से
कीजिए l
उत्तर :
शिल्प कलाओं में लगे कारीगरों के नाम
:
बढ़ाई,
लौहार, कुम्हार, सुनार,
पेंटर, चर्मकार, धतुकार्य-कर्ता,
बंदूक बनाने वाले , क्सिदाकर, दर्जी, रेशम, जरी तथा महीन
मलमल काकाम करने वाले शिल्पकार आदि l
तुलना :
1.
इस
अध्याय में नव बनाने वाले, मिट्टी की पूर्ति
बनाने वाले मूर्तिकार, मंदिर स्थापत्य के कारीगरों का उल्लेख
किया गया है l
2.
इस
अध्याय में एक चित्रकारी करने वाले चित्रकारों को सर्दी के समय आग के चारों और
बैठे हुए दिखलाया गया है l
3.
सत्रहवीं
शताब्दी में बर्नियर को यूरोपी ढंग से वस्त्रों के ढंग को दिखाया गया है l त्वेनिय्र नामक चित्रकार को भारतीय वेश-भूषा
में दिखाया गया है l
4.
गलीचा
बनाने की कला का भी उल्लेख किया गया है l
5.
विभिन्न
प्रकार के वस्त्रों का निर्माण जैसे सूती वस्त्र ,
सुंदर तरीके की मलमल, ऊनी वस्त्र के निर्माण
का भी इस अध्याय में उल्लेख है
6.
इस
अध्याय में बड़े सुंदर सोने के बने हुए चम्मच का चित्र बनाया गया है जिसमे आभूषण
निमाताओं ने हीरे, रुभी और मोती जड़े हैं
l
7.
इस
अध्याय में राजकीय कारखानों का जिक्र बर्नियर के जरिये किया गया है l यह शिल्पकारों की कार्यशाला है l एक कमरे में कासीदाकार, दुसरे में सुनार, तीसरे कमरे में चित्रकार, चौथे में रोगन करने वाले
शिल्पकार, पाँचवे में बढ़ई के काम करने वाले महान कारीगर हैं l
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