अध्याय:9 राजा और विभिन्न वृतांत
NCERT SOLUTION
CLASS 12 HISTORY IN HINDI
अध्याय:9 राजा और विभिन्न वृतांत
1.मुग़ल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की क्रिया का वर्णन कीजिए l
उत्तर :
1.
महत्ता : मुग़ल बादशाहों
के जरिये तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्यन के
महत्त्पूर्ण स्रोत हैं l ये इतिवृत इस साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के
सामने एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन की प्रयोजना के उद्देश्य से लिखे गए थे l
2.
दरबारी इतिहासकार : मुगल
इतिवृत के लेखक निरपवाद रूप से दरबारी ही रहे l उन्होंने जो इतिहास लिखे उनके
केंद्रबिंदु में थीं शासक पर केंद्रित घटनाएँ, शासक का परिवार, दरबार व अभिजात,
युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ l अकबर, शाहजहाँ और अलमगीर की कहानियों पर आधारित
इतिवृत्तों के शीर्षक अकबरनामा, शाहजहाँनामा, अलमगीरनामा यह संकेत करते हैं की
इनके लेखकों की निगाह में साम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही
था l
3.
फारसी में अधिकांश रचनाएँ
: मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे दिल्ली के सुल्तानों के काल में
उत्तर भारतीयभाषाओँ विशेषकर हिन्दवी व इसकी क्षेत्रीय भिन्नताओं के साथ फारसी,
दरबार और साहित्यिक रचनाओं की भाषा के रूप में, खूब पुष्पित-पल्लवित हुई l
4.
अनेकों का योगदान :
पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले बहुत लोग शामिल थे l
कागज बनाने वालों की पांडुलिपि की पन्नेतैयार करने, सुलेखकों की पाठकी नकल तैयार
करने,कोफ्तगरोंकीपृष्ठों को चमकाने के लिए, चित्रकारों की पाठ से दृश्यों को
चित्रित करने के लिए और जिल्दसाजों की प्रत्येक पन्नों को इकट्ठा कर उसे अलंकृत
आवरण में बैठाने के लिए आवश्यकता होती थी l
2.मुगल दरबार से जुड़े दैनिक
कार्य और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को
प्रतिपादित किया होगा ?
उत्तर : मुगल दरबार से संबंधित दैनिक
कार्यक्रम एंव विशेष उत्सव :
1.
सम्राट और राज सिंहासन :
शासक पर केंद्रित दरबार की भौतिक व्यवस्था ने शासक के अस्तित्व को समाज के हृदय के
रूप में प्रदर्शित किया l इसका केंद्रबिंदु को इस प्रकार राजसिंहासन अथवा तख्त था
जिसने संप्रभु के कार्यों को भौतिक स्वरूप प्रदान किया था l
2.
सम्मान प्रदर्शन या
शैलियाँ : शासक को किए गये अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस व्यक्ति की
हैसियत का पता चलता था जैसे जिस व्यक्ति के सामने ज्यादा झुककर अभिवादन किया जाता
था, उस व्यक्ति की हैसियत ज्यादा ऊँची मानी जाती थी l
3.
दीवान-ए-आम एंव
दीवाने-ए-खास : बादशाह अपनी सरकार के प्राथमिक कार्यों के संचालन हेतु सार्वजानिक
सभा भवन (दीवान-ए-आम ) में आते थे l दो घंटे बाद राजा दीवान-ए-खास में आते थे जहाँ
वो निजी सभाएँ और गोपनीय मुद्दों पर चर्चा करते थे l राज्य के वरिष्ठ मंत्री उनके
सामने अपनी याचिकाएँ प्रस्तुत करते थे और कर अधिकारी हिसाब का ब्यौरा देते थे
3. मुग़ल सम्राज्य में शाही
परिवार की स्त्रियों के जरिये निभाई गई भूमिका का मुल्यांकन कीजिए l
उत्तर : शाही परिवारों की स्त्रियों के द्वारा
निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन :
1.
शहजादियाँ और अन्य
महिलाएँ : मुगल परिवार में आने वाली बेगमों और अन्य स्त्रियों, जिनका जन्म कुलीन
परिवार में नहींहुआ था, में अंतर रखा जाता था l विवाह करके आई बेगमों को अपने
पतियों से स्वाभाविक रूप से अन्य स्त्रियों की तुलना में अधिक दर्जा और सम्मान
मिलता था l
2.
अगाचा : राजतंत्र से जुड़े
महिलाओं के पदानुक्रम में अगाचा की स्तिथि सबसे निम्न थी l इन सभी को नकद मासिक
भत्तातथाअपने-अपने
दर्जे के हिसाब से उपहार मिलता था l यदि पति की इच्छा हो और उसके पास चार पत्नियाँ
न हों तबअगाचा भी बेगम की स्तिथि पा सकती थीं l
3.
गुलाम और दासियाँ :
पत्नियों के अतिरिक्त मुगल परिवार में अनेक महिला तथा पुरुष गुलाम होते थे l वे
साधारण कार्य से लेकर कौशल, निपुणता तथा बुद्धिमता के अलग-अलग कार्यों का संपादन
करते थे l
4.
शाहजहाँ की पुत्रियाँ :
शाहजहाँ के पुत्रियाँ ‘जहाँआरा और रोशनआरा’ को ऊँचेशाही मनसबदारों के समान वार्षिक
आय होती थी l इसके अतिरिक्त जहाँआरा को सुरत के बंदरगाह नगर से राजस्व प्राप्त
होता था l और उन्होंने शाहजहाँ की नई राजधानी दिल्ली की कई परियोजनाओं में हिस्सा
लिया l दिल्ली के हृदय स्थल चाँदनी चौक की रुपरेखा जहाँआरा के जरिये बनाई गयी थी l
4.वे कौन से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय
उपमहाद्वीप से बाहरके क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान
किया ?
उत्तर :
1.
पदवियाँ ग्रहण करना और
पडौसी राजनैतिक शक्तियों के साथ संबंधों का विवरण तैयार करना : इतिवृतों के लेखकों
ने मुगल बादशाहों के जरिये धारण की गई कई गुंजायमान पदवियों को सूचीबद्ध किया है l
इनके अंतर्गत सामान्य पदवियाँ अथवा जहाँगीर अथवा शाहजहाँ जैसे अलग-अलग राजाओं के जरिये
अपनाई गई खास उपाधियाँ शामिल थीं l
2.
गंधार का प्रश्न और इरानियों और तुरानियों से संबंध
: मुगल राजाओं तथा ईरान व तुरान के पड़ोसी देशों के राजनितिक व राजनायिक रिश्ते
अफगानिस्तान को ईरान व मध्य एशिया के क्षेत्रों से पृथक करने वाले हिंदुकुश
पर्वतों के जरिये निर्धारित सीमा के नियंत्रण पर निर्भर करते थे l
3.
ऑटोमन साम्राज्य : तीर्थयात्रा
और व्यापार ऑटोमन साम्राज्य के साथ मुगलों ने अपने संबंध इस हिसाब से बनाए कि वे
ऑटोमन निंयत्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों व तीर्थयात्रियों के स्वतंत्र
आवागमन को बरकरार रखवा सकें l यह हिजाज अर्थात ऑटोमन अरब के उस हिस्से के लिए
विशेष रूप से सत्य था l जहाँ मक्का और मदीना के महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल स्तिथ थे l
5.मुगल प्रांतीय प्रशासन के
मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए l केंद्र किस तरह से प्रांतों पर नियंत्रण रखता
था ?
उत्तर:
1.
प्रांतीय प्रशासन :
केंद्र में स्थापित कार्यों के विभाजन को प्रांतों में दोहराया गया था l यहाँ भी
केंद्र के समान मंत्रियों के अनुरूप अधीनस्थ होते थे l प्रांतीय शासन का प्रमुख
गवर्नर होता था l जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत था l प्रत्येक सूबा कई
सरकारों में बंटा हुआ था l अक्सर सरकार की
सीमाएँ फौजदारों के निचे आने वाले क्षेत्रों की सीमाओं से मेल खाती थीं l इन
इलाकों में फौजदारों को विशाल घुड़सवार फौज और तोपचियों के साथ रखा जाता था l शासन
के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों का एक बड़ा सहायक समूह, लेखाकर लेखा-परीक्षक,
सन्देशवाहक और अन्य कर्मचारी होते थे जो तकनीकी रूप से दक्ष अधिकारी थे l ये
मानकिकृत नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार कार्य करते तथा प्रचुर संख्या में लिखित
आदेश व वृत्तांत तैयार करते थे l
2.
केंद्र का नियंत्रण :
मुगल इतिहासकारों ने प्राय: बादशाह और उसके दरबार को ग्राम स्तर तक के संपूर्ण
प्रशासनिक तंत्र का नियंत्रण करते हुए प्रदर्शित किया है l इस प्रक्रिया का
तनावमुक्त रहना असंभव सा ही था l स्थानीय जमींदार और मुगल साम्राज्य के
प्रतिनिधियों के बीच के संबंध कई बार संसाधनों और सत्ता के बँटवारों को लेकर
संघर्ष का रूप ले लेते थे l
6.उदाहरण सहित मुगल इतिहासों
के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर : मुगल इतिहास के विशिष्ट अभिलक्षण :
1.
मुगल साम्राज्य और सत्ता
के प्रचार-प्रसार का एक तरीका राजवंशीय इतिहास लिखना-लिखवाना था l मुगल राजाओं ने
दरबारी इतिहासकारों को विवरणों के लेखन का कार्य सौंपा l इन विवरणों में बादशाह के
समय की घटनाओं का लेखा-जोखा दिया गया।
2.
अंग्रेजी में लिखने वाले
आधुनिक इतिहासकारों ने मूल-पाठ की इस शैली को इतिवृत इतिहास नाम दिया l ये इतिवृत
घटनाओं का अनवरत कालानुक्रमिक विवरण प्रस्तुत करते हैं l
3.
एक और तो ये इतिवृत मुगल
राज्य की संस्थाओं के बारे में तथ्यात्मक सूचनाओं का खजाना थे, जिन्हें दरबार से
घनिष्ठ रूप से जुड़े व्यक्तियों के जरिये काफी मेहनत से एकत्रित एंव वर्गीकृत किया
गया था।
4.
मुगल बादशाहों के जरिये
तैयार करवाय गए इतिवृत साम्राज्य और उसके दरबार के अध्यन के महत्त्वपूर्ण स्रोत
हैं l ये इतिवृत इस सम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध
राज्य के दर्शन की परियोजना के उद्देश्य से लिखे गये थे l
7.इस अध्याय में दी गई दृश्य-सामग्री
किसहद तक अबुल फज्ल केद्वाराकिये गये ‘तस्वीर’ के वर्णन से मेल खाती है ?
उत्तर :
1.
किसी भी चीज का उसके जैसा
ही रेखांकन बनाना तस्वीर कहलाता है l अपनी युवावस्था के एकदम शुरूआती दिनों से ही
महामहिम ने इस कला में अपनी अभिरुचि व्यक्त की है l वे इसे अध्यन और मनोरंजन दोनों
का ही साधन मानते हुए इस कला को हर संभव प्रोत्साहन देते हैं l
2.
चित्रकारों की एक बड़ी
संख्या इस कार्य में लगाई गई है l हर हफ्ते शाही कार्यशाला के अनेक निरीक्षक और
लिपिक बादशाह के सामने प्रत्येक कलाकार का कार्य प्रस्तुत करते हैं और महामहिम
प्रदर्शित उत्कृष्टता के आधार पर इनाम देते तथा कलाकारों के मासिक वेदन वृद्धि
करते हैं l
3.
ब्यौरेकी सूक्ष्मता,
परिपूर्णता और प्रस्तुतिकरण की निर्भीकता जो अब चित्रों में दिखाई पड़ती है, वह
आतुल्नीय है l यहाँ तक की निर्जीव वस्तुएँ भी प्राणवान प्रतीत होती हैं l
4.
सौ से अधिक चित्रकार इस
कला के प्रसिद्ध कलाकार हो गये हैं l हिंदू कलाकारों के लिए यह बात खासतौर पर सही
है l उनके चित्र वस्तुओं की चित्र हमारी सोच से कहींपरेहैं l पूरे विश्व में कुछ
लोग ही उनके समान पाए जा सकते हैं l
8. मुगल अभिजात वर्ग के
विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे ? बादशाह के साथ उनके ‘संबंध’ किस तरह बने ?
उत्तर :
1.
मुगल अभिजात वर्ग की
चारित्रिक विशेषताएँ एंव सम्राट के साथ संबंध:मुगल
राज्य का महत्त्वपूर्ण स्तंभ इसके अधिकारीयों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक रूप
से अभिजात वर्ग कहते है l अभिजात वर्ग में भर्ती विभिन्न नृ-जातीय तथा धार्मिक
समूहों से होती थी l मुगलों के अधिकारी वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया
जाता था जो वफादारी से बादशाह के साथ जुड़े रहते थे l साम्राज्य के निर्माण के
आरंभिक चरण से ही तूरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे l इनमे
से कुछ हुमायूँ के साथ भारत चले आय थे कुछ
अन्य बाद में मुगल दरबार में आये थे l
2.
राजपूतों एंव भारतीय
मुसलमानों का प्रवेश : 1560 से आगे भारतीय मूल के दो शासकीय व भारतीय मूल के दो
समूहों राजपूतों व भारतीय मुसलमानों ने शाही सेवा में प्रवेश किया l इनमे नियुक्त
होने वाला प्रथम व्यक्ति एक राजपूती मुखिया अंबेर का राजा था जिसकी पुत्री से अकबर
का विवाह हुआ था l शिक्षा और लेखाशास्त्र की ओर झुकाव वालेहिंदूजातियों के सदस्यों को भी
पदोन्नत किया जाता था l
3.
जहाँगीर के काल : के दौरान ईरानियों को
उच्च पद हासिल हुए जहाँगीर के राजनैतिक रूप से प्रभावशाली रानी नूरजहाँ ईरानी थी l
औरंगजेब ने राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया l
4.
मनसबदारी प्रथा और अभिजात
वर्ग : सभी सरकारी अधिकारीयों के दर्जे और पदों में दो तरह के संख्या-विषयक ओहदे
थे : ‘जात’ शाही पदानुक्रम में अधिकारी के पद और वेतन का सूचक था ‘सवार’ यह सूचित
करता था क उससे सेवा में कितने घुड़सवार रखना अपेक्षित था l सत्रहवीं शताब्दी में
1,000 या उससे उपर जात वाले मनसबदार अभिजात कहेगए l
5.
अभिजातों के विभिन्न
कार्य : सैन्य अभियानों में ये अभिजात अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे तथा
प्रांतों में वे साम्राज्य के अधिकारीयों के रूप में भी कार्य करते थे l प्रत्येक
सैन्य कमांडर घुड़सवारों को भर्ती करता था, उन्हें हथियारों आदि से लैस करता था और
उन्हें प्रशिक्षण देता था l घुड़सवारी फौज मुगल का अपरिहार्य अंग थी जो की शाही
निशान से दागे गए घोड़ों का प्रयोग करती थी l
9.राजस्व के मुगल आदर्श का
निर्माण करने वाले तत्वों की पहचान कीजिए l
उत्तर :
1.
एक दैवीय प्रकाश: दरबारी
इतिहासकारों ने कई साक्ष्य का हवाला देते हुए यह दिखाया की मुगल राजाओं को सीधे
ईश्वर से शक्ति मिली थी l उनकी एक कथाओं में बताया गया है की एक रानी जो अपने
शिविर में आराम करते समय सूर्य की किरणों से गर्भवती हुई थी l उसके जरीय जन्म लेने
वाली सन्तान पर इस दैवीय प्रकाश का प्रभाव था जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहा l
2.
दैविक प्रकाश की महानता :
ईश्वर को ग्रहण करने वाली चीजों के पदानुक्रम में मुगल राजत्व को अबुल फज्ल ने
सबसे ऊँचे स्थान पर रखा l इस विषय में वह प्रसिद्ध ईरानी सूफी शहाबुद्दीन
सुहरावर्दी के विचारों से प्रभावितकियाथा।
3.
सुलह-ए-कुल : मुगल इतिवृत
साम्राज्य को हिन्दुओं, जैनों, जरतुशतियों और मुसलमानों जैसे अनेक भिन्न भिन्न
नृजातीय और धार्मिक समुदायों को समाविष्ट किये हुए साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत
करते हैं l सभी प्रकार के शांति और स्थायित्व के स्रोत रूप में बादशाह सभी धार्मिक
और नृजातिये समूहों सेऊपरहोता था l
4.
महत्त्व:
अबुल फज्ल सुलह-ए-कुल के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता
है l सुलह-ए-कुल में यूँ तो सभी धर्मों को अभिव्यक्ति की स्वंत्रता थी किंतु उसकी
एक शर्त थी की वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहूँचाएँगे अथवा आपस में नही लड़ेंगे l
5.
सभी के लिय शांति की निति
को लागु करना :सुलह-ए-कुलकाआदर्शराज्य
की नीतियों के जरिये लागू किया गया l मुगलों के अधीन अभिजात वर्ग मिश्रित किस्म का
था अर्थात उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूतो, दक्खनी सभी शामिल थे l इन सबको
दिये गए पद और पुरुस्कार पूरीतरह से राजा के प्रति उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित
थे l
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