अध्याय:6 भक्ति सूफी परम्पराएँ
NCERT SOLUTION CLASS XII
अध्याय:6 भक्ति सूफी परम्पराएँ
1.उदाहरण सहित सपष्ट कीजिए की संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या
अर्थ निकालते हैं ?
1. प्रजा
प्रणालियों के समन्वय को ही इतिहासकार सम्प्रदाय समन्वय मानते हैं l इसके अंतर्गत
वहविभिन्न सम्प्रदाय के लोगों के विश्वासों और आचरणों के मिश्रण और उनके पीछे छुपे
निहित समान उद्देश्यों को लोगों के सामने रखते हैं l वे धार्मिक विकास के विभिन्न
पद्धतियों और सम्प्रदायों के विकास को समझने का प्रयास करतें हैं l उदहारण के लिए वे आठवीं शताब्दी के भारत में
पूजा प्रणालियों के संबंध के बारे में अपने विचार लिखते है l
2. इतिहासकरों
का सुझाव है की यहाँ कम से कम दो प्रक्रियाएँ कार्यरत थीं जिसमेएक प्रक्रिया ब्राह्मणीय
विचारधारा के प्रचार के थी l
3. इसी
काल की एक अन्य प्रक्रिया थी स्त्री, शूद्रों व अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और
आचरणों को ब्राह्मणों के जरिये स्वीकृत किया जाना और उसे एक नया रूप प्रदान करना l
2.किस हद तक उपमहाद्वीप में
पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सर्वभैमिकआर्दशों का समिश्रण
हैं l
उत्तर :
1. इस्लाम
के उदय के साथ साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में नई इमारतों का निर्माण होने लगा l इन
इमारतों को देखने से यह सपष्ट होता है की आँठवीं से अठाहरवीं शताब्दी तक पाई जाने
वाली मस्जिदों का निर्माण स्थानीय परिपाटी और सर्वभैमिक इस्लामी स्थापत्य शैलियों से जुड़े आर्दशों का सम्मिश्रण था l एक
सर्वभैमिक धर्म के स्थानीय आचारों के संग जटिल मिश्रण का सर्वोत्तम उदाहरण संभवतः
मस्जिदों की स्थापत्य कला में दृष्टिगोचर होता है l
2. उदाहरण
के लिए केरल राज्य में बनाई गई तेरहवीं शताब्दी के मस्जिदों के शिखर के आकार की छत
पर ध्यान देने पर लगता है इस पर भारतीय विशेषकर स्थानीय भवन निर्माण कला का सपष्ट
प्रभाव है l
3. भारतीय
उपमहाद्वीप के एक देश बंगाल देश में बनाई गई सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ की अतिया
नामक मस्जिद ईंटों की बनी है l इसके छत के तीनों उलटे कटोरे के आकर के नमूने अनेक
भारतीय और अन्य देशों में बनी मस्जिदों के नमूने से मिलती है l
3. बे शरिया और बा शरिया
सूफी परंपरा के बिच एकरूपता और अंतर दोनों को स्पष्ट कीजिए l
उत्तर
:
1. मुस्लिम
कानून के संग्रह को शरिया कहते हैं यह कुरान, हदीस, कियास और इजमा से उत्पन्न हुआ
है l कुछ रहस्यवादियों से सूफी सिद्धांतों की मौलिक व्याख्या के आधार पर नवीन
आंदोलन की नींव रखी l खानकाह का तिरस्कार करके यह रहस्यवादी, फकीर की जिंदगी
बिताते थे l
2. निर्धनता
और ब्रह्मचार्य को उन्होंने गौरव प्रदान किया l इन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता
था- कलंदर, मदारी, हैदरी इत्यादि l शरिया की अवहेलना करने के कारण उन्हें बे-शरिया
कहा जाता था l इस तरह उन्हें शरिया का पालन करने वाले सूफियों से अलग करके देखा
जाता था l
4. चर्चा कीजिए की अलवार,
नयनार और विर शैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की ?
उत्तर :
अलवार, नयनार और वीर शैवों ने निम्न प्रकार
से जाती प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की l
1. प्रारंभिक
भक्ति आंदोलन अलवारों और नयनारों के नेतृत्वमें हुआ l वे एक स्थान से दुसरे स्थान
पर भ्रमण करते हुए तमिल में अपने इष्ट के स्तुति में भजन गाते थे l
2. अपनी
यात्राओं के दौरान अलवारऔर नयनार संतों ने कुछ पवनस्थलों को अपने इष्ट का
निवासस्थल घोषित किया l ईन्हीं स्थलों पर बाद में विशाल मंदिरों का निर्माण हुआ और
वे तीर्थस्थल माने गए l संत-कवियों के भजनों को इन मंदिरों में अनुष्ठानों के समय
गाया जाता था और साथ ही संतों की प्रतिमा की भी पूजा होती थी l
3. कुछ
इतिहासकारों का मानना है की अलवार और नयनार संतों ने जाती प्रथा व ब्राह्मणों की
प्रभुता के विरोध में आवाज उठाई l कुछ हद तक ये बाद सत्य होती है क्योंकि भक्ति
संत तो उन जातियों से आए थे जिन्हें ‘अस्पृश्य’ माना जाता था l
4. आज
भी लिंगायत समुदाय का इस क्षेत्र में महत्त्व है l वे शिव की आराधना लिंग के रूप
में करते हैं इस समुदाय के पुरुष वाम स्कंध के रूप में करते हैं l यह लोग वाम
स्कंध पर चाँदी के पिटारे में एक लघु लिंग को धारण करते हैं l जिन्हें श्रद्धा की
दृष्टि से देखा जाता है उनमे यायावर भिक्षु शामिल हैं l लिंगायतों का विश्वास है
के मृत्योपरांत भक्त शिव में लीन हो जाएंगे l
7. क्यों और किस तरह शासकों
ने नयनार और सूफी संतों से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया ?
उत्तर : नयनार
और अलवार संत वेल्लाल कृषकों के जरिये सम्मानित होते थे इसलिए आश्चर्य नहीं की
शासकों ने भी उनका समर्थन पाने का प्रयास किया हो l
1. चोल
सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा किया और अपने सत्ता के प्रदर्शन के लिए
सुंदर मंदिरों का निर्माण कराया जिनमें पत्थर और धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित
थीं l इस तरह इन लोकप्रिय संत-कवियों की परिकल्पना को, जो जन-भाषाओँ में गीत रचते
व गाते थे , मूर्त रूप प्रदान किया गया l
2. अजमेर
स्थित ख्वाजा मुइनद्दिन की दरगाह पर मुहम्मद बिन तुगलक पहला सुल्तान था जो इस
दरगाह पर आया था किंतु शेख के मजार पर सबसे पहली इमारत मालवा के सुल्तान
गियासुद्दीन खल्जी ने पंद्रहवीं शताब्दी में बनवाई थी चूँकि यह दरगाह दिल्ली और
गुजरात को जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग पर थी l अत: यहाँ अनेक लोग आते थे lअकबर भी
यहाँ चौदह बार आया है और उसने दरगाह के अहाते में एक मस्जिद भी बनवाई l
5. कबीर अथवा बाबा गुरु नानक
के मुख्य उपदेशों का वर्णन कीजिए l इन उपदेशों का किस तरह संप्रेषण हुआ l
उत्तर :
1. कबीर
की शिक्षाएँ
a) धार्मिक
शिक्षाएँ : धर्म के संबंध में कबीर ने अत्यंत
महत्त्वपूर्ण विचार उपस्थित किए हैं l उन्होंने किसी धार्मिक विश्वास को इसलिए
स्वीकार नहीं किया की वह धर्म का अंग बन चूका है अपितु अंधविश्वासों, व्रत,
अवतारोपासना, ब्राह्मणों के कर्मकांड तथा तीर्थ आदि पर कसकर व्यंग्य किए l
b) अंधविश्वासों
का घोर विरोध :कबीर ने अंधविश्वासों का जोरदार विरोध
किया है उनके विचार से यह सपष्ट है की उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों
के अंधविश्वासों मूर्तिपूजा, नमाज, आदि पर कसकर व्यंग किए l
c) भक्ति
मार्ग के समर्थक : भक्ति भावना का कबीर ने पूरा समर्थन
किया उन्होंने निर्गुण निराकार भक्ति का मार्ग अपनाकर मानव के सम्मुख भक्ति का
मौलिक रूप रखा है l
d) समन्वयवादी
दृष्टिकोण : कबीर ने तत्कालीन समाज में हिन्दू तथा
इस्लाम, धर्मों,संस्कृतियों, के संघर्ष का डटकर विरोध किया
e) गृहस्थ
जीवन के त्याग का विरोद्ग एंव योगिक क्रियाओं तथा पुस्तकीय-ज्ञान अनावश्यक
: कबीर के विचारों के विचारानुसार साफ जीवन अपनाने के लिए गृहस्थी का सामान्य जीवन
त्यागने की कोई आवश्यकता नहीं l निर्गुण भक्ति धारा कबीर पहले संत थे जो संत होकर
भी अंत तक शुद्ध गृहस्थी बने रहे एंव शारीरिक श्रम की प्रथिष्ठा को मनव की सफलताओं
का आकार बताया l
2. बाबा
गुरु नानक के शिक्षाएँ
a) एकेश्वरवाद
: कबीर की तरह ही नानक भी एकेश्वरवाद पर बल दिया
उन्होंने ऐसे इष्टदेव की कल्पना की जो अकाल मूर्त, अजन्मा तथा स्वयंभू है l गुरु
नानक देव के अनुसार इश्वर के प्रति और प्रेम से ही मुक्ति सम्भव है l इसके लिए
वर्ण, जाती और वर्ग का कोई भेद नहीं है l उनके अनुसार अच्छे व्यवहार एंव आदर्श तथा
उच्च चरित्र से की निकटता प्राप्त की जा सकती है l
b) गुरु
की महत्ता अंगीकार तथा अंडम्बरों का विरोध : गुरु
नानक ने भी मार्ग दर्शन के लिए गुरु की अनिवार्यता को पहली शर्त माना l उन्होंने
मूर्तिपूजा, तीर्थ यात्रा आदि धार्मिक आंडम्बरों की कतु आलोचना की
6. सूफी मत के मुख्य धार्मिक
विश्वासों और आचारों की व्याख्या कीजिए l
उत्तर : सूफी
मत के मुख्यधार्मिक विश्वासों और आचारों के ननिम्नलिखित में व्याख्या l
1. एकेश्वरवाद
: चुकी सूफी मत इस्लाम की तरफ पूर्णतया झुकारहा इसलिए
इसने एकेश्वरवाद में विश्वास रखा वे ईश्वर को अल्लाह तथा रहीम कहते हैं l और
पैगम्बर के उपदेशों के साथ साथ अपने अपने सिलसिलों के पीरों के उपदेश को भी
महत्त्व देते थे l
2. आत्मा
: सूफी साधकों के अनुसारआत्मा शरीर में कैद है इसलिएसूफीसाधक
मृत्युका स्वागत करते हैं परन्तु यह भी कहते हैं बिना परमात्मा के कृपा के आत्मा
का मिल्न ईश्वर से नही होसकता l
3. जगत
: सूफी साधकों के अनुसार परमात्मा ने जगत के सृष्टि की
है l जगत माया से पूर्ण नही है ईश्वर ने दुनिया में अपने बंदों को उसकी पैरवी करने
को भेझा है l
4. मानव
: सूफी साधकों के अनुसार सभी जीवों में मानव श्रेष्ठ हैं l सभी प्राणी मानव के
स्तर को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं l
5. कुरान
तथा रहस्यवाद : सूफी साधकों के अनुसार कुरान एक महान
ग्रंथ और एक आसमानी किताब हैं जिसे मुहम्मद पर उतारा गया l और इनके अनुसार कुरान
में लिखी बातों को विशेष महत्त्व देना चाहिए l सूफियों के रहस्यवाद के अनुसार
अल्लाह के कहर से भय रखना चाहिए और उससे माँफी मागनी चाहिए चूँकि वो बहुत दयालु है
l
6. लक्ष्य
की प्राप्ति : परमात्मा के साथ एक्त्व्य प्राप्त करना
सूफी का चरम लक्ष्य है l इस लक्ष्य को प्राप्त करने के अनेक साधन हैं l अल्लाह के
नाम को दिल से स्मरण करना l सूफी साधक परमात्मा में पूर्ण लय हो जाने को फना की
अवस्था मानते हैं अहम या अहंकार कामिटने पर ही फना की अवस्था मिल जाती है
8.उदाहरण सहित विश्लेषण
कीजिए की क्यों भक्ति और सूफी चिंतकों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओँ का
प्रयोग किया ?
उत्तर :
1. भक्त
संतों के जरिये विभिन्न भाषा का प्रयोग :
a) सबसे
प्रांरभिक भक्त संतों ने संस्कृत, पाली, प्राकृत तमिल, मलयालम आदि भाषाओं का प्रयोग
किया वह विभिन्न स्थानोंजैसेशहरों, कस्बोंकेयज्ञों,पूजा उत्सव आदि में हिस्सा लेते
हैं l अनेक ब्राह्मण, वेदों के प्रचारक, बौद्ध और जैन संतों का यहाँ उल्लेख किया
जा सकता है l
b) तमिलनाडु
तथा अन्य अनेक दक्षिण भारत के स्थानों पर अलवार और नयनार संतों ने यज्ञ कराए, देवी
देवताओं के पूजा के लिए मंदिर बनाये , तीर्थ स्थानों पर गये लोगों ने उनके गीतों
और भजनों को गाया तथा कालांतर में उन्हें तमिल वेद के रूप में संकलित किया गया l
c) मध्यकालीन
भक्त संतों ने, कबीर ने पद और दोहों को स्थानीय भाषा और बोलियों में रचे l उन्हें
कुछ ग्रन्थों की रचना का श्रेय दिया जाता है l उनकी भाषा खिचड़ी थी l
2. सूफी
विचारक :
a) यह
भी जनता के मध्य रहकर विभिन्न भाषाओँ का प्रयोग किया करते थे l आमीर खुसरों एक
साहित्यकार कवि, गायक और सूफी पीरों की संगत में रहने वाले थे l वेहिंदी के साथ
साथ फारसी भाषाओँ का प्रयोग भी किया करते थे l
b) सूफियों
नेलोगों की भाषाओँ को और भी सरल बनादिया उसे हिन्दवी का स्वरूप दिया l बाबा फरीद
ने स्थानीय भाषाओं का प्रयोग किया l उनकी भषाओं में हिंदी, पंजाबी, आदि को देखा जा
सकता था
c) कुछ
हिंदी साहित्यकारों और विचारकों ने प्रेम को आधार मानकर ग्रन्थों की रचना की l मलिक
मोहम्मद जायसी ने पदमावत नामक ग्रंथ लिखा जिसमें उन्होंने पदमनी और चितौड़ के राजा
रतनसून की प्रेम कहानी का उल्लेख है कर्नाटक के आस पास अनेक सूफी कव्वालियाँ,
कविताएँ, गीतों की रचना हुई l दक्षिण भारत में जोसूफी संत रहते थे उन्होंने उर्दू
भाषा से मिलती-जुलती दक्षिणी जन-साधारण के जरिये उपयोग की गई l भाषा में अपने
विचार व्यक्त किए और कविताएँ लिखी l
9. इस अद्याय में प्रयुक्त
किन्हीं पाँच स्रोतों का अध्यन कीजिए और उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों पर
चर्चा कीजिए l
उत्तर
:
1. प्रथमसहस्त्राब्दी
के मध्य तक आते-आते भारतीय उपमहाद्वीप का परिवेश धार्मिक इमारतों-स्तूप, विहार और
मंदिरों में हो गया l यदि इमारतें किसी विशेष धार्मिक विश्वासों और आचरणों का
प्रतिक है, वहीं अन्य धार्मिक विश्वासों का पुनर्निर्माण हम साहित्यिक परंपरा जैसे
पुराणों के आधार पे भी कर सकते है l जिनका वर्तमान रूप उसी समय बनना शुरू हो गया
था
2. इस
काल के नुतनसाहित्यिक स्रोतों में संत कवियों की रचनाएँ हैं जिनमें उन्होंने
जनसाधारण की क्षेत्रीय भाषाओँ में मौखिक रूप से अपने को व्यक्त किया था यह रचनाएँ
जो अधिकतर संगीतबद्ध हैं l संतों के अनुयायियों के जरिये उनकी मृत्यु के उपरांत
संकलित की गई l ये परंपराएँप्रवाहमान थी l
3. इतिहासकार
इन संत कवियों के अनुयायियों के जरियेलिखी गई उनकी जीवनियों का भी इस्तेमाल करते हैं
हालाँकि यह जीवनियाँ अक्षरश सत्य नहीं हैं तथापि इनसे यह ज्ञात होता हैकी अनुयायी
इन पथ-प्रदर्शक स्त्री पुरुषों के जीवन को किस तरह से देखते थे l
4. अलवारतथा
नयनार संतों की रचनाओं को वेद जितना महत्त्वपूर्ण बताकर इस परंपरा को सम्मानित
किया गया l उदाहरणस्वरूप, अलवार
संतों के एक मुख्य काव्य संकलन का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता है
5. दसवीं
शताब्दी तक आते आते बारह आलवारों की रचनाओं का एक संकलन कर लिया जो नलयिरादिव्यप्रबंधम के नाम
से जाना जाता है l दसवीं शताब्दी में ही अप्पार संबंदर और सुंदरारकी कविताएँ तवरम नामक
संकलन में रखी गईं जिसमें कविताओं का संगीत के आधार पर वर्गीकरण हुआ l
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